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Chaitra Navratri

विश्व पुस्तक दिवस आज, 23 अप्रैल 1995 को हुई थी शुरूआत

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आज दुनियाभर में विश्व पुस्तक दिवस (World Book Day 2019) मनाया जा रहा है. किताबों को पढ़ने वाले और चाहने वालों के लिए आज खास दिन है. कंप्यूटर और इंटरनेट की दुनिया में भी लोग किताबों को पढ़ना पसंद करते हैं.


UNESCO ने 23 अप्रैल 1995 को इसकी शुरुआत की थी. जिसके बाद से दुनिया में इस दिन को विश्व पुस्तक दिवस (World Book Day) के तौर पर मनाया जाने लगा. 1923 में प्रसिद्ध राइटर मीगुयेल डी सरवेन्टीस (Miguel de Cervantes) को सम्मान करते हुए ही बता दिया गया था कि मीगुयेल (Miguel de Cervantes) की याद में वर्ल्ड बुक डे (World Book Day) को मनाया जाएगा. उनका देहांत 23 अप्रैल को हुआ था, जिसके बाद इसी दिन वर्ल्ड बुक डे मनाया जाने लगा.
वर्ल्‍ड बुक डे क्यों है खास (World Book Day Facts)


23 अप्रैल को मीगुयेल डी सरवेन्टीस के अलावा महान लेखक विलियम शेक्सपियर का भी देहांत हुआ था. आज उनकी 402वीं पुण्यतिथि है. गौरतलब है कि मीगुयेल डी सरवेन्टीस और विलियम शेक्सपियर का देहांत एक ही दिन 23 अप्रैल 1616 में हुआ था. विलियम शेक्सपियर को विश्व का ‘साहित्य सम्राट’ भी कहा जाता है. आज भी उनकी लिखी किताबों को लोग पढ़ना पसंद करते हैं. शेयरपियर के प्ले (नाटक) आज भी लोगों के बीच जिंदा हैं.


क्या है इस साल की थीम (World Book Day 2019 Theme)
यूनेस्‍के के डायरेक्‍टर जनरल ऑड्रे अजॉउले के इन शब्‍दों के जरिए वर्ल्‍ड बुक डे 2019 की थीम को समझा जा सकता है, ‘किताबें सांस्‍कृतिक अभिव्‍यक्ति का एक रूप हैं, जो एक चुनी हुई भाषा के जरिए रहती हैं. प्रत्‍येक प्रकाशन को ए‍क खास भाषा में लिखा जाता है और वह भाषा-विशिष्‍ट लोगों के लिए है. इस तरह एक किताब को खास भाषा और सांस्‍कृतिक सेटिंग के तहत लिखा, निर्मित, आदान-प्रदान और सराहा जाता है. इस साल हम इसी महत्‍वपूर्ण आयाम पर प्रकाश डालना चाहते हैं क्‍योंक‍ि यूनेस्को के नेतृत्व में साल 2019 को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्‍ट्रीय वर्ष के रूप में चिन्हित किया गया है, ताकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अपनी उस प्रतिबद्धता की पुष्टि कर सके जिसके तहत स्‍वदेशी जनता अपनी संस्कृतियों, ज्ञान और अधिकारों का संरक्षण कर सके.”


क्‍यों मनाया जाता है वर्ल्‍ड बुक डे
दुनिया भर मे वर्ल्‍ड बुक डे इसलिए मनाया जाता है ताकि किताबों की अहमियत को समझा जा सके. किताबें महज कागज का पुलिंदा नहीं बल्‍कि वे भूतकाल और भविष्‍यकाल को जोड़ने की कड़ी का काम करती हैं. साथ ही संस्‍कृतियों और पीढ़‍ियों के बीच में एक सेतु की तरह हैं.


 वर्ल्‍ड बुक डेके दिन UNESCO के अलावा प्रकाशकों, किताब विक्रेताओं और लाइब्रेरी का प्रतिनिधित्‍व करने वाले अन्‍य संस्‍थान एक साल के लिए वर्ल्‍ड बुक कैपिटल का चुनाव करते हैं. साल 2019 के लिए संयुक्‍त अरब अमीरात के शारजाह शहर को वर्ल्‍ड बुक कैपिटल बनाया गया है. वहीं 2020 में मलेशिया के कुआलालंपुर को इसकी राजधानी बनाया जाएगा.


वर्ल्‍ड बुक डेके जरिए यूनेस्‍को रचनात्‍मकता, विविधता और ज्ञान पर सब के अधिकार के मकसद को बढ़ावा दे

ना चाहता है. यह दिवस विश्‍व भर के लोगों खासकर लेखकों, शिक्षकों, सरकारी व‍ निजि संस्‍थानों, एनजीओ और मीडिया को एक प्‍लैटफॉर्म मुहैया कराता है, ताकि साक्षरता को बढ़ावा दिया जा सके और सभी लोग तक शिक्षा के संसाधनों की पहुंच हो. ज्ञान का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं- किताबें. किताबों की सोहबत हमें जीवन का रास्ता दिखाती है. कई बार महबूब का चेहरा किताब होता है तो कई बार समाज ही किताब बन जाता है, कुल मिलाकर वो तमाम चीज़ें जिन्हें आप समझकर इल्म हासिल कर सकते हैं वह किताब से ही संभव है.


पेश हैं किताबों पर शायरों के अल्फ़ाज़-


जिसे पढ़ते तो याद आता था तेरा फूल सा चेहरा
हमारी सब किताबों में इक ऐसा बाब रहता था
– असद बदायुनी
जो पढ़ा है उसे जीना ही नहीं है मुमकिन
ज़िंदगी को मैं किताबों से अलग रखता हूँ
– ज़फ़र सहबाई
काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बेपढ़े, लिखे मशहूर हो गया
– बशीर बद्र
किताबें भी बिल्कुल मेरी तरह हैं
अल्फ़ाज़ से भरपूर मगर ख़ामोश
– अज्ञात
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
– जाँ निसार अख़्तर
वही फ़िराक़ की बातें वही हिकायत-ए-वस्ल
नई किताब का एक इक वरक़ पुराना था
– इफ़्तिख़ार आरिफ़
खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझ को
– नज़ीर बाक़री
खुली किताब थी फूलों भरी ज़मीं मेरी
किताब मेरी थी रंग-ए-किताब उस का था
– वज़ीर आग़ा
छुपी हैं अनगिनत चिंगारियाँ लफ़्ज़ों के दामन में
ज़रा पढ़ना ग़ज़ल की ये किताब आहिस्ता आहिस्ता
– प्रेम भण्डारी
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
– निदा फ़ाज़ली
एक चराग़ और एक किताब और एक उम्मीद असासा
उस के बाद तो जो कुछ है वो सब अफ़्साना है
– इफ़्तिख़ार आरिफ़
फ़लसफ़े सारे किताबों में उलझ कर रह गए
दर्सगाहों में निसाबों की थकन बाक़ी रही
– नसीर अहमद नासिर
किधर से बर्क़ चमकती है देखें ऐ वाइज़
मैं अपना जाम उठाता हूँ तू किताब उठा
– जिगर मुरादाबादी
किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को
काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के
– आदिल मंसूरी
वफ़ा नज़र नहीं आती कहीं ज़माने में
वफ़ा का ज़िक्र किताबों में देख लेते हैं
– हफ़ीज़ बनारसी
बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो
ऐ काश हमारी आँखों का इक्कीसवाँ ख़्वाब तो अच्छा हो
– ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
भुला दीं हम ने किताबें कि उस परीरू के
किताबी चेहरे के आगे किताब है क्या चीज़
– नज़ीर अकबराबादी
चेहरा खुली किताब है उनवान जो भी दो
जिस रुख़ से भी पढ़ोगे मुझे जान जाओगे
– अज्ञात
वाक़िये तो अनगिनत हैं मेरी ज़िंदग़ी के
सोच रही हूं किताब लिखूं या हिसाब लिखूं
– अज्ञात
पढ़ने वालों की कमी हो गयी है आज इस ज़माने में
नहीं तो गिरता हुआ एक-एक आंसू पूरी किताब है
– अज्ञात

 

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